मेरे मौला,,,,, दरगाह शरीफ अजमेर,,उर्स पर विशेष

2931

ख़्वाजा ग़रीब नवाज का 807 वां उर्स

‘‘ख़्वाजा‘, मेरे ख़्वाजा‘’
जयपुर 15 मार्च2019।(निक धार्मिक)’आज भी ख़्वाजा ग़रीब नवाज की यह मज़ार दुनिया की तमाम क़ौमों के लिए बिना किसी भेदभाव के खुली है, जहां दरबार में हाज़िर होकर लोग मुंह मांगी मुरादें पाते हैं और ईमान की दौलत से माला-माल होकर जाते हैं।’’
’’हजरत शेख़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने हिन्दुस्तानियों को एक नई ताक़त दी थी। चिश्ती सम्प्रदाय की बुनियाद उन्होंने ही डाली। ख़्वाजा साहब मोहब्बत की मिसाल, एकता की सौग़ात लाने वाले व सादगी से जीना सिखाने वाले इन्सान थे।’’
ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स पर ही नहीं, हर रोज़ उनकी दरगाह पर सैकड़ों लोग श्रद्धा-सुमन लेकर पहुंचते हैं। वे एक नेक इन्सान थे और इन्सानों की तकलीफ को दूर करने के लिए वह ख़ुदा से दुआ करते थे और अपनी तरफ से भी पूरी कोशिश करते थे। उनके उर्स पर अजमेर जाना कई लोगों की ज़िन्दगी की सबसे बड़ी चाह हो गई है। हालांकि उर्स के मौक़े पर लाखों लोग यहां आते हैं और हर मुश्क़िल और तकलीफ का सामना करते हुए भी ख़्वाजा के मज़ार तक पहुंच कर फूल और चादर चढ़ाते हैं। वे सबकी तकलीफ़ सुनते हैं और उन्हें दूर करते हैं। इसीलिए पूरे हिन्दुस्तान का मालिक बादशाह अकबर, अपनी मुराद पूरी होने पर आगरा से अजमेर तक पैदल चलकर आया था। क्यांेकि अकबर के यहॉ बड़ी मन्नत-मुरादों के बाद बेटा जो पैदा हुआ था।
शहजादे का नाम ‘‘सलीम‘‘ रखा गया। शहजादे की पैदाइश की ख़ुशी में अकबर ने अपने तोशाखाने (कोषालय) का मुंह खोल दिया और दिल खोलकर धन लुटाया था। सात दिन तक लगातार ख़ुशियों का दौर चलता रहा। सारे बन्दियों को कारागार से रिहा कर दिया गया। कवियों और शायरों को इनाम बांटे गए, सैनिकों को इनाम दिए गए। ग़रीबों को खाना, कपड़े, कम्बल बांटे गये। घर-घर में नाच गाने, शहनाई, नगाड़ोें के स्वर गूंजने लगे। घी के दिये जलाये गये, आतिशबाजी छोड़ी गयी जिससे सारा आकाश जगमगाने लगा ओैर आसमान रौशन हो गया। बच्चोें को मिठाईयां बांटी गयी, पाठशालाओं व मदरसों में छुट्टी कर दी गयी।
इसके बाद अकबर ने शहजादे को देखा और ख़्वाजा साहब से किए गये अपने वादे के अनुसार आगरा से अजमेर की पदयात्रा की। कहते हैं अकबर ने इस यात्रा के दौरान जूते नहीं पहने थे। यह यात्रा 20 जनवरी 1570 को शुरू हुई थी तथा 16 चरणों में पूरी की गयी थी। जब अकबर नंगे पैर यात्रा करके ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर पहुंचा तो वहां कई दिन रूका तथा इबादत की, फक़ीरों की ख़िदमत की, धन बांटा और उनसे आशीर्वाद लिया। सच ही कहा है:-
होके मायूस तेरे दर से सवाली न गया।
झोलियां भर गईं सबकी, कोई ख़ाली न गया।।
भारत के इतिहास में ख़्वाजा साहब का पैग़ाम-ए-मोहब्बत, अमन और सुक़ून का जज़्बा और बिना किसी फ़र्क़ के दुनिया की हर क़ौम के साथ एक सा बर्ताव, सुनहरे अल्फ़ाज़ों में लिखा गया है। ख़्वाजा साहब की व्यक्तिगत ज़िंदगी के बारे में कहा जाता है कि काफी उम्र होने के बाद भी उन्होंने शादी नहीं की थी। एक दिन रसूले-ख़ुदा (सलल्लाहो अलैह वसल्लम) ने ख़्वाब में आकर कहा कि ‘‘मोइनुद्दीन, जब हमारे सारे हुकुम पूरे किए तो ये भी करो।‘‘ तब ख़्वाजा साहब ने एक के बाद एक, दो निकाह किए, जिनसे तीन लड़के और एक लड़की पैदा हुईं।
कहते हैं ख़्वाजा साहब को अपना ‘‘आख़िरी वक़्त‘‘ आने से पहले ही मालूम हो गया था। 29 जमादी उस्मानी, 633 हिजरी को रात की नमाज के बाद अपने हुजरे-मुबारक़ (कमरे) में तशरीफ ले गये और दरवाज़ा बंद कर लिया। हमेशा की तरह जिक्र-ए-इलाही में मशग़़़ूल हो गए।
लगातार 5 रोज़ तक जब बाहर नहीं आए तो ख़ादिमों के सुबह की नमाज़ के बाद कुण्डी बजाने पर जवाब नहीं मिला तो किसी तरह दरवाज़ा खोला गया, तो पाया कि आपका इन्तेक़ाल हो चुका है। 6 रजब, 633 हिजरी (सन् 1230) को अजमेर में ही आपके हुजरे में ही दफ़नाया गया। आज भी यह मज़ार दुनिया की तमाम क़ौमों के लिए बिना किसी भेदभाव के खुली है, जहां दरबार में हाज़िर होकर लोग मुंह मॉगी मुरादें पाते हैं और ईमान की दौलत से माला-माल होकर जाते हैं।
श्रृद्धा से ख़्वाजा पीर, ग़रीब-नवाज़, अजमेर वाले ख़्वाजा, के नाम से जाने जाते हैं। उनकी याद में पहली हिज़री सम्वत् की पहली रजब से 6 रजब तक हर साल उर्स मनाया जाता है, जिसमें हर मजहब के लाखों लोग, दुनियां के हर कोने से अजमेर शरीफ़ तषरीफ़ लाते हैं। दरगाह का जन्नती दरवाजा उर्स के पहले दिन खोल दिया जाता है। इस बार 807 वाँ उर्स बड़ी शानो-शौक़त के साथ मनाया जा रहा है, जो 5 मार्च को झंडा फहराने से शुरु होकर, 17 मार्च (सालाना फ़ातेहा) को छठी शरीफ के कुल के बाद, 19 मार्च (बुधवार) को बड़े कुल की फातेहा के बाद ज़ायरीनों की वापसी की रवानगी शुरु हो जाएगी और उर्स 02 अप्रेल, 2019 तक चलेगा।
उर्स के दौरान 25 दिनों के लिए ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की दोनों देग़ों का ठेका अहमद रज़ा के नाम रिकॉर्ड 3 करोड़ 36 लाख रुपये में सन् 2014 में छूटा था। इसमें 15 दिन उर्स के और 10 दिन पुष्कर मेले के होते हैं। उससे पहले यह ठेका 3 करोड़ 5 लाख 786 रुपए में छूटा था।
उर्स पर ज़्यादा लोगों के आने की उम्मीद हर बार होती है। सरकार भी पूरी तरह तैयारी में रहती है। विशेष रेलें, बसें और वायु सेवाएं, इस उर्स के लिए लगाई जाती हैं तथा श्रृद्धालुओं के ठहरने, खाने-पीने की बढ़िया व्यवस्था की जाती है। हर बार की तरह दरगाह शरीफ़ को सजाया-संवारा जाता है और साफ-सफाई का भी ख़्याल रखा जाता है।
अजमेर, चूंकि जयपुर से 124 किमी दूर है और दिल्ली से अजमेर जाने वाले श्रृद्धालु जयपुर होकर ही गुज़रते हैं।
जयपुर से भी अजमेर के लिए विशेष रेल गाड़ियां व बसें चलाई जाती है।
आलेख व चित्र सौजन्य से वरिष्ठ पत्रकार लियाकत अली भट्टी