लाइफस्टाइल में गलत परिवर्तनों से बढ़ रही किडनी डिजीज,, रुकमणी बिरला हॉस्पिटल और किडनी पेशेंट वेलफेयर सोसाइटी की ओर से आयोजित पैनल डिस्कशन में विशेषज्ञों ने दी जानकारी,,

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जयपुर 21 दिसंबर 2022।(निक चिकित्सा) किडनी हमारे शरीर का अहम अंग है, जो रक्त को साफ करने के साथ शरीर से गंदगी और टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है। राजमा जैसी दिखनी वाली किडनीज़ हमारी मुट्ठी के बराबर होती हैं, यह रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ होती हैं। लाइफस्टाइल में कई खराबियों के कारण किडनी डिजीज बढ़ गई हैं। अगर व्यक्ति क्रॉनिक किडनी डिजीज से पीड़ित है तो इसके उपचार का विकल्प किडनी ट्रांसप्लांट है। शहर के रुकमणी बिरला हॉस्पिटल और किडनी पेशेंट वेलफेयर सोसाइटी की ओर से आयोजित पैनल डिस्कशन में एक्सपर्ट्स ने किडनी डिजीज के लक्षणों और उपचार के बारे में जानकारी दी।

*हर 10 में से एक व्यक्ति को सीकेडी* –

यूरोलॉजी एंड रिनल ट्रांसप्लांट के सीनियर कंसलटेंट डॉ महेंद्र सिंह पुनिया ने बताया कि अगर गुर्दों की बीमारी तीन महीने से अधिक समय तक बनी रहती है, तो इस इस अवस्था को क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) कहते है। सीकेडी दुनिया की आबादी को तेजी से प्रभावित कर रही है। हालात यह है कि हर 10 में से एक व्यक्ति सीकेडी की समस्या से जूझ रहा है। इस बीमारी की जल्दी पहचान कर इसका इलाज करना अति आवश्यक है। शुरुआत में इसे दवाइयों से नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है लेकिन बीमारी बढ़ने पर इसका अंतिम उपचार डायलीसिस या किडनी ट्रांसप्लांट है।

*इन्हें ज्यादा खतरा* –

इंटरनल मेडिसिन विभाग के डायरेक्टर डॉ सुशील कालरा ने बताया कि ऐसे मरीज जिन्हें डायबिटीज या हाइपरटेंशन की शिकायत हो, किडनी में पथरी की शिकायत हो, एनएसएआईडी (NSAID) टाइप की ड्रग्स (डाईक्लोफिनैक,आइब्रुफेन) पेनकिलर के रूप में ले रहे हों, मरीज को किडनी की कोई बीमारी रही हो या उनके परिवार में पहले किसी को किडनी की आनुवांशिक बीमारी हो, तो उन्हें सीकेडी होने की संभावना हो सकती है। वर्तमान में डायबिटीज सीकेडी का प्रमुख कारण हो गया है और करीब 30 प्रतिशत डायबिटीज के मरीजों में सीकेडी की समस्या पाई जाती है। डॉयबिटीज़ एवं ब्लड प्रेशर को पूर्ण रूप से नियंत्रित रखने पर कुछ हद तक सी के डी से बचाव संभव हैं |

*जल्दी पहचान व बचाव अति आवश्यक*

    सीनियर कंसलटेंट नेफ्रोलॉजी रिनल ट्रांसप्लांट डॉ. शीलभद्र जैन ने बताया कि यह बीमारी कई बार रूटीन चेकअप में भी पहचान में आ जाती है। लेकिन बीमारी बढ़ चुकी हो तो उनमें कुछ लक्षण सामने आने लगते हैं जैसे कि उल्टी होना या उल्टी का मन हो रहा हो, भूख कम लगना, पेशाब रुक-रुक कर आना, कम-अधिक मात्रा आना या रात को ज्यादा आना, पेशाब में झाग या खून आना, शरीर में सूजन होना, खून की कमी होना। कभी-कभी हाई ब्लड प्रेशर भी सीकेडी के एक लक्षण के रूप में सामने आता है।

    *डायलिसिस से नियंत्रित करते हैं सीकेडी* –

    सीनियर कंसलटेंट नेफ्रोलॉजी एंड रिनल ट्रांसप्लांट डॉ. अश्वनी शर्मा ने बताया कि किडनी के पूर्ण रूप से खराब हो जाने पर डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है। डायलिसिस दो तरह से होता है। पहला हीमो डायलिसिस, जो मशीन द्वारा रक्त को साफ कर मरीज को वापस लौटाया जाता है। यह प्रकिया सप्ताह में 2-3 बार होती है। इसके अलावा सीएपीडी या पानी वाला डायलिसिस भी होती है जो मरीज घर पर ही कर सकता है।
    *किडनी ट्रांसप्लांट नई व उन्नत तकनीकों के द्वारा*–
    डायरेक्टर यूरोलॉजी एंड रिनल ट्रांसप्लांट डॉ. देवेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि किडनी रोगों व ट्रांसप्लांट में अब अत्याधुनिक तकनीकों के आने से इलाज आसान हो गया है। बड़ा चीरा नहीं लगाना पड़ता। दूरबीन लेप्रोस्कॉपिक तकनीक से किडनी व यूरोलॉजी संबंधी इलाज आसान हो गया है। नई तकनीकों से सर्जरी सुरक्षित भी रहती है। किडनी ट्रांसप्लांट में किडनी देने वाले को किसी तरह की परेशानी नहीं आती, उसका जीवन सामान्य रहता है। अंगदान के प्रति जागरुकता जरूरी है, इससे हजारों मरीजों की जिंदगी बचाई जा सकती है।
    किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी है जागरूकता और प्रोत्साहन
    लोगों में किडनी दान करने को लेकर फैली भ्रांति को हटाकर जागरूकता लाना जरूरी है। देशभर में करीब 2 लाख लोग किडनी ट्रांसप्लांट के इंतजार में हैं जबकि मात्र 5 से 10 हजार लोगों को ही किडनी मिल पाती है। माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, पति-पत्नी आदि अपनी किडनी डोनेट कर अपनों की जिंदगी बचा सकते हैं। किडनी डोनेट करने से डोनर को कोई खतरा नहीं रहता है और वह एक किडनी से भी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।