एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस के रोगियों के लिए अंतरध्वनी द्वारा जयपुर में सहायता केन्द्र प्रारंभ होगा,

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सहायता केन्द्र का उद्देश्य एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस और रूमेटोइड गठिया के रोगों के संदर्भ में जागृति फैलाने
और रोगियों को सामान्य - स्वस्थ जीवन जीने में सहायता करना है

जयपुर, 06 अक्तूबर 2022।(निक चिकित्सा) आगामी 9 अक्तूबर को जयपुर में अंतरध्वनी द्वारा एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस के रोगियों के लिए सहायता केन्द्र का प्रारंभ किया जाएगा। इस तरह के रोगों के खिलाफ यह पहला सहायता केन्द्र होगा।
बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने और रोगियों को एक सामान्य और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करने के उद्देश्य से प्रारंभ होने जा रहे सहायता केन्द्र का उद्गाटन सुप्रसिद्ध रूमेटोलोजिस्ट डो. अविनाश जैन, डो. आराधना सिंह, डो. अजय शाह और अंतरध्वनी जयपुर केन्द्र के प्रोग्राम हेड़ शालू गोलेचा विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे।

इस संदर्भ में अधिक जानकारी देते हूए सुश्री शालू गोलेचा ने बताया कि, सहायता केन्द्र का मुख्य उद्देश्य रोगियों की प्राथमिक आवश्यकता जैसे कि फिजियोथेरेपी, चिकित्सा और परामर्श की सुविधा उपलब्ध करवाना है। जिसके चलते इन रोगों के निदान और रोकथाम में काफी सहायता प्रदान होगी। इस तरह की सेवाएं अंतरध्वनी के सदस्य रोगियों को न्यूनत्तम या निःशुल्क रूप से उपलब्ध होगी।
पिंक सिटी जयपुर में एक साल पूर्व अगस्त में एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस के रोगियों के लिए सहायता केन्द्र का प्रारंभ किया गया था। अब एक साल बाद पुनः अंतरध्वनी द्वारा सहायता केन्द्र का प्रारंभ किया जा रहा है।
अंतरध्वनि का उद्देश्य चिकित्सकों और मरीजों को जोड़ने के साथ - साथ एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस के उन्मूलन के बारे में जागरूकता फैलाना है। इस संदर्भ में अधिक जानकारी देते हूए अंतरध्वनी संस्था के फाउन्डर और हाई-टेक आईसोल्यूशन्स के सीईओ प्रणीत बंथिया ने बताया कि, केन्द्र में देश के जाने माने रूमेटोलोजिस्ट की उपस्थिति में बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ रोगियों को सामान्य और स्वस्थ जीवन जीने में सहायता प्रदान की जाएगी। वर्तमान में अंतरध्वनी द्वारा अहमदाबाद - सूरत और बड़ोदा के साथ उदयपुर के केन्द्रों में 3,000 हजार से अधिक रोगियों की सहायता की गई है।

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    एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस से संबंधित बीमारियों के संपर्क में आनेवाले रोगियों, विशेषज्ञ डोक्टरों, फिजियोथेरेपिस्ट, योग प्रशिक्षकों और आहार विशेषज्ञों को एक साथ लाने में सहायता केन्द्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जिसके माध्यम से इस बीमारी के संदर्भ में नए शोध और निष्कर्ष को साझा किया जाता है और उसके आधार पर इस बीमारी के खिलाफ लड़ने के लिए नई दवाईंया बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।
    देश की सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. आराधना सिंह इस संदर्भ में बताती हैं कि, ज्यादातर ऑटोइम्यून बीमारियां दीर्धकालिन प्रकृति की होती है। यह अवधारणा गलत है कि मात्र डाक्टर और दवाओं के माध्यम से ही इन बीमारियों को दूर किया जा सकता है। मरीजों को सभी के समर्थन की आवश्यकता होती है। सहायता केन्द्र की परिकल्पना भले ही नई हो, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह महत्वपूर्ण और आवश्यक है। यह मरीजों के लिए परिवार से दूर एक और परिवार की तरह है।
    डॉ. अविनाश जैन ने सहायता केन्द्र की आवश्यकता के संदर्भ में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि, इस तरह के केन्द्र के माध्यम से प्रत्येक मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों को हरसंभव सहायता उपलब्ध करवाई जाती है। ये रोग ऐसे हैं कि जिसमें रोगियों को असहनीय शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है तो दूसरी तरफ उनके अभिभावकों को मानसिक रूप से झुझना प़ड़ता है। इस तरह के मामलों में सहायता केन्द्र मरीजों और उनके अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण साबित है।
    एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस एक ऐसी स्थिति हैं, जहां रीढ़ की हड़्डी के सभी या कुछ जोड़ बांस की तरह आपस में जुड़ जाते हैं। यह अक्सर रीढ़ की हड्डी में सुजन के कारण देखने को मिलता है। गंभीर स्थिति में यह दिल और आंखों को भी प्रभावित करता है। यह एक तरह से दुर्लभ बीमारी है और प्रत्येक 10,000 व्यक्तियों में आठ को प्रभावित करती है। यह रोग आजीवन और लाइलाज होने के बावजूद नियमित व्यायाम, जीवन शैली में संयम के साथ चिकित्सा सहायता रोगियों को काफी हद तक राहत प्रदान कर सकती है।
    एंकिलोजिंग स्पोन्डिलाइटिस के शुरूआती लक्षणों में पीठ के निचले हिस्से और नितंबों में बार - बार दर्द और जकड़न की समस्या देखने को मिलती है। जो समय के साथ धीरे धीरे होता है और तकरीबन तीन महिनों तक दोनों तरफ इस तरह का लगातार दर्द होता है। 20-30 वर्ष की आयु के बीच के पुरूषों को एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस और रूमेटोइड आर्थराइटिस सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। इसका सही कारण अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि आनुवंशिक, पर्यावरण और शरीर के रोग प्रतिकारक क्षमता के आधार पर इस तरह के रोग होने की संभावना है।
    विशेषज्ञों द्वारा इस तरह के रोगों के खिलाफ लड़़ने के लिए मरीजों को कैल्शियम और विटामीन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। जो कि शरीर के संरचनात्म क्षति को रोकने में काफी सहाय करता है। इसके अलावा दवा, नियमित व्यायाम और योगाभ्यास सहित मेडिटेशन भी कारगर साबित हो सकता है। इसी तरह रुमेटोइड आर्थराइटिस एक पुरानी सुजन संबंधी रोग है, जो जोड़ों को खास कर हाथ -पैर को प्रभावित करता है। इसके अलावा मरीजों के शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है। देश में हर साल रुमेटोइड आर्थराइटिस के 10,00,000 से अधिक मामलों का निदान किया जाता है।