स्वतंत्रता के बाद पहली बार आदिवासी समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना देश के सभी आदिवासी भाई-बहनों का बड़ा सम्मान है: श्रीमती द्रौपदी मुर्मू
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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने अंतिम छोरों पर बसे गाँवों के लोगों को मुख्यधारा मंे जोड़ने के लिए मुझे माध्यम बनाया है, वंचित, आदिवासी और शोषित मुझमें स्वयं को देख सकते हैं: श्रीमती मुर्मू
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ओडिशा में छोटे-छोटे सपनों के साथ पली-बढ़ी जनजाति समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति भवन तक जाने का रास्ता दिया गया, यही अन्त्योदय है:
श्रीमती मुर्मू
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जयपुर, 13 जुलाई, 2022। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की राष्ट्रपति उम्मीदवार श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का आराध्य भगवान गोविन्ददेवजी की नगरी जयपुर पधारने पर जयपुर एयरपोर्ट से लेकर कार्यक्रम स्थल तक कई किलोमीटर मानव श्रृंखला के रूप में जनजाति समाज से राजस्थान की सभी 36 कौमों ने पलक पांवडे बिछाकर भव्य स्वागत अभिनन्दन किया।
जयपुर एयरपोर्ट एवं कार्यक्रम स्थल पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया, प्रदेश संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे, सांसद कनकमल कटारा, डॉ. किरोड़ीलाल मीणा, जसकौर मीणा, भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष जितेन्द्र मीणा इत्यादि वरिष्ठ नेताओं ने स्वागत एवं अभिवादन किया।
होटल क्लार्क्स आमेर स्थित कार्यक्रम स्थल पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का प्रदेश के विभिन्न अंचलों से पधारे आदिवासी समाज के प्रबुद्धजनों, विधायकों, सांसदों ने पारम्परिक तरीके से स्वागत किया, उन्होंने आदिवासी पोशाक व तीर-कमान भेंट की और चुनरी ओढ़ायी, साथ ही पार्टी के सभी विधायकों, वरिष्ठ नेताओं ने भी राजस्थान के वीर महापुरूषों की तस्वीर भेंट कर उनका अभिनन्दन किया। डॉ. सतीश पूनियां ने जयपुर के आराध्य गोविन्ददेवजी की तस्वीर भेंट कर उनका स्वागत-अभिनन्दन किया।
जितेन्द्र मीणा ने बताया कि श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के जयपुर आगमन पर उनके स्वागत में एयरपोर्ट से लेकर कार्यक्रम स्थल तक जनजाति संस्कृति को प्रदर्शित करते हुए स्वागत किये गये, जिनमंे गबरी नृत्य, कन्हैया पद दंगल, महिला नृत्य, पुष्प वर्षा, ढोल-नंगाड़े इत्यादि प्रस्तुतियाँ दी गई। जितेन्द्र मीणा ने श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को मीन भगवान की तस्वीर भेंट की।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने विधायकों और सांसदों से संवाद के दौरान सम्बोधित करते हुए कहा कि राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि की वंदना एवं नमन करते हुए सभी प्रदेशवासियों को हृदयतल से नमस्कार करती हूँ। गुलाबी नगरी आना उतना ही सुखद है जितना अपनों के बीच अपने मन और दिल की बात कहना।
मुर्मू ने कहा कि राजस्थान और ओडिशा में भौगोलिक परिस्थितियों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों राज्यों में काफी समानताएं हैं, जिनमें प्रकृति के साथ जीना, राजस्थान के लोगों द्वारा जल को जीवन की भाँति संवारकर रखना, इसी प्रकार ओडिशा के लोगों को चक्रवाती तूफानों के बावजूद जिंदगी का पहिया नई उम्मीदों के साथ घूमाते रहना आता है।
श्रीमती मुर्मू ने कहा कि एक राजस्थानी कहावत है कि ‘‘अम्मर को तारो-हाथ से कौनी टूटे’’ मैं जहाँ से यहाँ तक आई हूँ इस कहावत की व्यवहारिकता को मैं समझती हूँ। मेरी अब तक की जीवन यात्रा का अनुभव कहता है कि अनायास कुछ नहीं होता, हमारे आज के साथ बीते हुए कल के संघर्ष जुड़े हुए रहते हैं। संघर्ष हमें उद्देश्य व संकल्पों के प्रति सचेत रखते हैं।
पवित्र नदियाँ माही, सोम और जाखम के संगम की संघर्ष व बलिदान की भूमि बेणेश्वर धाम को प्रणाम करती हूँ। मुझे अन्त्योदय को जमीनी रूप देने की जमीनी जानकारी है, जो मैंने विभिन्न दायित्वों पर रहते हुए अंतिम व्यक्ति के घर को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के हरसम्भव प्रयत्न किये हैं और यह प्रयत्न निरन्तर जारी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन और आदिवासी अब सुरक्षित एवं विकसित होती व्यवस्था के मुख्य भागीदार बन रहे हैं। पिछले कई वर्षों में वंचितों, शोषितों एवं आदिवासियों के जीवन में उन्नति के साथ बड़े बदलाव आये हैं। विकास अब दूरस्थ क्षेत्रों तक बराबरी से पहुँच रहा है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार आदिवासी समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना, जिसका सबसे जीवंत उदाहरण है, जो देश के सभी आदिवासी भाई-बहनों का सम्मान है।
मुर्मू ने कहा कि राष्ट्रपति का पद प्राप्त करना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं होगी, यह किसी एक स्थान, समुदाय अथवा समाज के लिए भी गर्व का विषय नहीं होगा। यह भारतीय समाज में अन्त्योदय के प्रवाह से उपजी समावेशी एकता की मिसाल साबित होगा। भौगोलिक-सांस्कृतिक बहुलता हमें व्यक्तिगत पहचान देती है किन्तु मूलतः सवा सौ करोड़ से अधिक ‘‘मैं’’ मिलकर भारतीयों के रूप में ‘‘हम’’ हो जाते हैं। हम अनेकता में एकता का ध्वज थामे भारत माँ की संतान है।
उन्होंने कहा कि मरूधरा में आकर हल्दीघाटी की माटी को माथे पर लगाने की कामना होती है, जहाँ स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी और आदिवासी जननायक राणा पूंजा भील जी ने एक ध्वज तले अपने से कहीं विशाल सेना के विरूद्ध युद्ध किया था।
राजस्थान के वीरों ने मातृभूमि की रक्षा और नारी सम्मान की सुरक्षा को शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा। उन्हें राज्य और देश में ही नहीं वैश्विक रूप से भी नायकत्व प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि आत्मसम्मान को जीवन मूल्यों में अग्रणी रखने वाले इस राज्य में रणबांकुरों के नामों की सूची का अंत नहीं है, विस्तार ही विस्तार है।
मुर्मू ने कहा कि राजस्थान का गर्वीला इतिहास पवित्र उद्देश्यों के लिए किए गए संघर्ष की कहानियाँ कहता है। यहाँ जल, जंगल और जमीन को भावी पीढ़ियों को उनकी मूल अवस्था में सौंपने हेतु अनगिनत क्रांतिकारी संघर्ष किए हैं। इस धरा पर पन्नाधाय जैसी बलिदानी माताएं हुई तो गुरू जाम्बेश्वर की अनन्य भक्त अमृता देवी जैसी प्रकृति प्रेमी वीरांगनाएं भी हुई।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की मेहमान-नवाजी पूरी दुनियां में प्रसिद्ध है तो वहीं राजस्थानी जहाँ भी गये हैं वहाँ की धरती को खुशहाली और तरक्की दी है। यहाँ के जनमानस में मानव धर्म और अध्यात्म रचा-बसा है। रामदेवजी, गोगाजी, तल्लिनाथ समान लोक देवी-देवताओं की आराधना प्राचीन परम्पराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के पीढ़ी दर पीढ़ी जीवंत होने का प्रमाण है।मीरा बाई भी इसी पावन धरा पर जन्मीं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का नया अध्याय लिखा। राजस्थान में कृष्णजी का मनोहारी उजास है और ओडिशा में उनका एक अलौकिक विश्वपालक रूप जगन्नाथ है।
उन्होंने कहा कि एनडीए और समर्थक दलों की ओर से जब मुझे राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनाया गया तो मैं इसके पीछे की सोच को समझ सकती थी क्योंकि मेरा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की संवेदनशील चेतना व दूरदर्शी सोच से साक्षात्कार है।
वे मरूभूमि की माँ-बेटियों के हाथों में किताब और कलम देखना चाहते हैं और वनभूमि की माँ-बेटियों को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि श्री मोदी सरकार के शासन में नारी शक्ति के घर नल से जल पहुँच रहा है। साथ ही जनजाति समाज की बेटियों को शिक्षा से जोड़कर उनको सपने देखने की स्वतंत्रता का अधिकार मिल रहा है।
ओडिशा में छोटे-छोटे सपनों के साथ पली-बढ़ी जनजाति समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति भवन तक जाने का रास्ता दिया गया, यह लोकतांत्रिक स्वप्न है, यही अन्त्योदय है, यह गाँव, गरीब और जंगल की बेटी पर विश्वास जताना है। यहाँ उपस्थित सांसदों और विधायकों के माध्यम से राजस्थान की देवतुल्य जनता का समर्थन मांग रही हूँ।
मैंने कभी राष्ट्रपति बनने के विषय में नहीं सोचा था, लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने अंतिम छोरों पर बसे गाँवों के लोगों को मुख्यधारा मंे जोड़ने के लिए मुझे माध्यम बनाया है। वंचित, आदिवासी और शोषित मुझमें स्वयं को देख सकते हैं। हम में ना कोई भेद है, ना मतभेद है, आशांवित, अग्रसर और आश्वस्त हैं नये भारत के निर्माण के लिए।