जयपुर 30 मई 2022।(निक साहित्य)पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह सही मायने में किसान प्रणेता थे, उन्हें किसानों की परवाह थी। उनका मानना था कि देश में आजादी से पहले और बाद में हुए विभिन्न किसान आंदोलनों ने किसानों की चेतना जागृत की। उन्हें किसानों के वोट मिलते थे फिर भी सभी किसानों को उनका यही संदेश था की कमाई के नजरिए से हमें पूरी तरह खेत पर आश्रित नहीं होना चाहिए। अगर किसी किसान के दो बेटे हैं तो एक को ही कृषि में लाएं, दूसरे को किसी और काम में लगाएं। उन्होंने हमेशा अंतर्जातिय विवाह पर जोर दिया। चौधरी
चरणसिंह एक समाज सुधारक, अर्थशास्त्री और अच्छे प्रशासक रहे। चौधरी जी का हमेशा यही कहना था कि सत्ता में आने के लिए आपके लक्ष्य एकदम स्पष्ट होने चाहिए। अगर धन कमाने की लालसा हो तो राजनीति में ना आए राजनीति में आने का उद्देश्य समाज में सुधार और देश का भला होना चाहिए।’ बीसूका समिति राजस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान ने कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित लेखक राजेन्द्र कसवा की किताब ‘किसान प्रणेता चौधरी चरणसिंह’ पर विद्याश्रम स्कूल के सुरुचि केंद्र में आयोजित ‘पुस्तक चर्चा’ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में यह उद्गार व्यक्त किए। दो सत्र में आयोजित इस कार्यक्रम में पुस्तक चर्चा के दौरान डॉ. चंद्रभान ने चौधरी चरणसिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व के कई किस्से सुनाए।
इससे पहले कलमकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक निशांत मिश्रा ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि संस्था की ओर से आगामी जुलाई में वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार स्व. ईशमधु तलवार को समर्पित दो दिवसीय ‘कलमकार साहित्य उत्सव’ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें देशभर के करीब 800 साहित्यकार शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि सितम्बर में जैसलमेर के सम के धोरों में साहित्य यात्रा के तहत कार्यक्रम और अक्टूबर में उदयपुर में विभिन्न साहित्यिक विधाओं पर दो दिवसीय कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी।
पहले सत्र में पुस्तक पर बात करते हुए वरिष्ठ समीक्षक एवं आलोचक राजाराम भादू ने चौधरी चरणसिंह पर बात करते हुए बताया कि जब युवा थे तब शुरुआती दिनों में उन्हें बिल्कुल आभास नहीं था कि चौधरी चरणसिंह एक बड़े अर्थशास्त्री रहे। जयपुर आने के बाद मैंने अर्थशास्त्र पर लिखीचौधरी चरणसिंह की किताबें पढ़ी। उनका यही मानना था कि भारत की प्रगति का रास्ता खेत और खलिहान से होकर जाता है। हाल ही में हुए किसान आंदोलन की बात करते हुए उन्होंने बताया कि ये आंदोलन अचानक से नहीं हुआ, पूरा इतिहास है इसके पीछे और उन्होंने अब तक हुए सभी किसान आंदोलन का जिक्र किया। वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार उमा ने कहा कि चौधरी चरणसिंह पर बात करना यानी किसानों पर बात करना। आजादी के आंदोलन में अपनी महत्ती भूमिका निभाने वाले इस नेता को आजादी के बाद जिन समस्याओं से सबसे ज्यादा जूझना पड़ा, उनमें एक थी भारत की सामंती व्यवस्था। जमीन का मालिकाना हक कुछ ही लोगों के पास था, इस असमानता को दूर करने के लिए उन्होंने युद्ध स्तर पर काम किए। उनकी बदौलत ही यूपी में जमींदारी प्रथा उन्मूलन विधेयक बना। उन्होंने इस बात पर भी नजर रखी कि किसानों के साथ फिर धोखा न हो, क्योंकि सामंती ताकतों ने पटवारियों की शरण ली और किसानों की जमीन को धोखे से जमींदारों को दिया जाने लगा, लेकिन चौधरी चरणसिंह अड़े रहे। पटवारियों के सामूहिक त्यागपत्र को स्वीकार लिया, लेकिन गलत बात को बर्दाश्त नहीं किया। जमींदारी उन्मूलन एक्ट में संशोधन करवाया ताकि किसान भूमि से वंचित न हो। लेखक राजेन्द्र कसवा और प्रो. जे.एम. ढाका और निशांत मिश्रा ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। इस सत्र का संचालन डॉ. ऊषा दशोरा ने किया।
दूसरे सत्र में देश के ख्यात कवियों ने आज की मौजूदा हालातों को देखते हुए अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित ने ‘यह आंदोलन नहीं विद्रोह है/जैसे तुम इस देश के प्रधानमंत्री हो/वैसे ही मैं इस देश का नागरिक/पहले तुम अपना कागज दिखाओ’, ख्यात शाइर लोकेश कुमार साहिल ने ‘यह तमन्ना है कि हर्फे वफा हो जाऊं/मेरी बातें रहें बेशक मैं फना हो जाऊं’, अजंता देव ने ‘मैं पिछली फसलों का नमूना हूं/मेरे बीज अब नहीं बोये जाएंगे’, मुख्यमंत्री के ओएसडी एवं वरिष्ठ साहित्यकार फारूक आफरीदी ने ‘मेरे गांव का चेहरा क्यों बदल गया है इतना’, प्रेमचंद गांधी ने ‘वे डरे हुए हैं’ और ‘हत्या का विकल्प’, डॉ. ऊषा दशोरा ने ‘युद्ध और बच्चे/ दुनिया की सारी बंदूकें फूल बन जाएं’ जैसी शानदार कविता सुनाई। डॉ. कविता माथुर ने इस सत्र का संचालन किया। इस अवसर पर निशांत मिश्रा ने डॉ. चन्द्रभान को कलमकार मंच से प्रकाशित अनेक लेखकों की पुस्तकों का सेट भेंट किया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज, पूर्व आईएएस राजेन्द्र भानावत, किस्सागोई फेम लेखिका उमा, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार तसनीम खान, इरा टाक, टीना शर्मा, प्रियदर्शिनी कच्छावा, कैलाश भारद्वाज, मीनू कंवर, शरद गौड़, नीलम शर्मा, सुंदर बेवफा, नवल पांडेय, प्रेम प्रकाश भूमिपुत्र, नितिन यादव, डॉ. राकेश कुमार, चित्रा भारद्वाज, सुजीत गौड़, पूनम भाटिया, दीपक कुमार राय, श्रद्धा, रवि यादव सहित अन्य साहित्यप्रेमी मौजूद थे।