जीवनशैली में सुधार से लीवर संबंधी बीमारियां टाली जा सकती है,,,
जयपुर, 23 सितंबर,2021।(निक चिकित्सा) लीवर रोगों के बढ़ते मामलों और फैटी लीवर के दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास के तहत मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत ने आज एक जन जागरूकता सत्र आयोजित किया।
यह सत्र मैक्स हॉस्पिटल साकेत में हीपैटोलॉजी और लीवर ट्रांसप्लांट मेडिसिन के मुख्य निदेशक और प्रमुख डॉ. संजीव सैगल की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। उन्होंने लोगों की बदलती जीवनशैली के बारे में चिंता जताई और बताया कि इससे कैसे लीवर संबंधी डिसआॅर्डर होते हैं। इस सत्र में लीवर रोगों के बढ़ते मामलों पर भी प्रकाश डाला गया और लीवर फाइब्रोसिस या लीवर सिरोसिस को विकसित होने से रोकने के लिए शुरुआती जांच के महत्व को बताया गया।
डॉ. संजीव सैगल ने कहा, ‘पिछले दो दशकों के दौरान जीवन की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आया है लेकिन आर्थिक तरक्की के कारण लाइफस्टाइल संबंधी कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं। लाइफस्टाइल में बदलाव, मोटापा और डायबिटीज के बढ़ते मामलों के कारण ‘लाइफस्टाइल स्वास्थ्य संकट’ बढ़ा है। इसमें निष्क्रिय लाइफस्टाइल और अल्कोहल का अधिक सेवन भी लीवर संबंधी बीमारियों पर सीधा असर डालते हैं। वैसे तो कोशिकाओं में कुछ मात्रा में फैट का जमना सामान्य बात है लेकिन यदि यह 5 फीसदी से ज्यादा हो जाता है तो लीवर फैटी माना जाता है। अल्कोहल के अधिक सेवन से फैटी लीवर बढ़ता है जबकि कुछ ऐसे लोगों में भी यह विकसित होता है जो अल्कोहल सेवन नहीं करते। कोई लक्षण सामने नहीं आने के कारण फैटी लीवर का दशकों तक पता ही नहीं चल पाता है। लेकिन जब लीवर में सूजन आने लगती है तो तकलीफ होने लगती है जिसे स्टेटोहेपेटाइटिस कहा जाता है।
फैटी लीवर के शुरुआती चरणों में कोई लक्षण नहीं दिखता। लेकिन जब बीमारी बढ़ने लगती है तो मरीज को थकान, कमजोरी, भूख की कमी, मितली, पेट के ऊपरी हिस्से में हल्का दर्द या भारीपन महसूस होने लगता है। जांच कराने पर लीवर एंजाइम, डिसलिपिडेमिया, इंसुलिन का स्तर आदि बढ़ने का पता चलता है। फैटी लीवर की पहचान के लिए अल्ट्रासाउंड और फाइब्रोस्कैन भी कराया जाता है।
डॉ. संजीव सैगल ने बताया, ‘यदि फैटी लीवर का इलाज नहीं कराया गया तो यह लीवर फाइब्रोसिस और फिर सिरोसिस या कई मामले में लीवर कैंसर की स्थिति तक पहुंच जाता है। एडवांस्ड स्टेज में कुछ मरीज में लीवर खराब होने की स्थिति आ जाती है जबकि कई मरीजों को लीवर ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है। बिना लक्षण वाले चरण में इस समस्या की पहचान हो जाने से मरीज को पूरी तरह रोग से छुटकारा मिल जाता है।लेकिन बिना लक्षण वाले फैटी लीवर पीड़ित मरीजों को चिकित्सा जांच के लिए लाना बड़ी चुनौती है। लिहाजा हमारा प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों में लीवर संबंधी बीमारियों के बारे में जागरूकता लाने के साथ ही उन्हें शीर्ष स्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। इस तरह के जागरूकता सत्रों से हम उम्मीद करते हैं कि बहुत सारे लोगों को इन स्थितियों से बचाया जा सकता है और उन्हें स्वस्थ जीवन जीने का लाभ दिलाया जा सकता है।’