“परशु” प्रतीक है पराक्रम का “राम” पर्याय है सत्य सनातन का इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के धारक-स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज

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जयपुर 14 मई 2021।(निक धार्मिक)स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज हाथोज धाम ने सभी प्रदेशवासियों को परशुराम जयंती की शुभकामनाएं एवं बधाई देते हुए बताया कि शास्त्रोंक्त मान्यता तो यह है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार है। इसलिए उनमें अपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं।
पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने तो अपने पांचवें पुत्र का नाम राम रखा था। लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न करके उनके दिव्यास्त्र परशु (फरसा) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए
स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने बताया कि अक्षय तृतीया को जन्म होने के कारण परशुराम के शस्त्र शक्ति भी अक्षय और शास्त्र संपदा भी अनंत है। विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य धनुष की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते थे। यह उनकी अक्षय शक्ति का प्रतीक था, यानी शस्त्र शक्ति का।

स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने कहा कि विष्णु पोषण के देवता है अर्थात राम यानी पोषण/रक्षण का शास्त्र शस्त्र से ध्वनित होती है शक्ति शास्त्र से प्रतिबिंबित होती है शांति शस्त्र के शक्ति यानी संहार शास्त्र की शांति अर्थात संस्कार मेरे मत में परशुराम दर्शन परशु के रूप में शस्त्र और राम के रूप में शास्त्र का प्रतीक है। एक वाक्य में कहूं तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका पैगाम है।
स्वामी श्री बालमुकुंद आचार्य जी महाराज ने कहा कि परशुराम जयंती पर कोरोना संक्रमण को देखते हुए सभी भक्तजन सायंकाल अपने अपने घरों के ऊपर 21 दीपक जलाकर अपने अपने घरों पर ही परशुराम जयंती मनाएं।