जयपुर 30 अप्रैल 2021। चूँकि राजस्थान में कोरोना का कहर ज्यादा है, तो गहलोत सरकार अपने अनुभवी इष्ट संकट मोचनो ‘रघु’ और ‘गोविंद’ के ‘प्रताप’ से इस महामारी पर पार पाने का प्रयास कर रही है, जबकि औरों को सरकारी ‘पायलट’ का दर्जा देकर अन्य सेवाओं में व्यस्त रखा है.
जनता त्राहिमाम करती हुई ‘ऑक्सीजन’ और ‘रेमदेसीविर’ की माँग कर रही है, जबकि नाकाम सरकार उन्हें ‘ऑक्सी-जन’ की बजाए ‘वैष्णव-जन’ और ‘रेमदेसीविर’ की जगह ‘राम-देश-के-वीर’ जपने का सुझाव दे रही है!
उधर दिल्ली में, बड़ी वाली कांग्रेस मोदी सरकार पर यह इल्जाम लगा रही है की ‘कॉविड-वैक्सीन’ के नाम पर भी बीजेपी वाले भगवाकरण करते हुए वैक्सीन का नाम ‘राम-देश-के-वीर’ रख दिए है.
तो मोदी जी ने सफाई देते हुए भाषण देने की अपनी विशेष शैली में कहा “विद्या कसम, हमें दवाई के नाम का कुछ भी पता नहीं था वरना हम इस दवाई का नाम ‘रेमदेसी-वीर’ की जगह ‘वीर-सावरकर’ या सरदार वल्लभभाई पटेल covid औषधि नहीं रख लेते!!”
बखान करने लायक तो ये भी है की भारत देश की ‘कोरोना’ की दवा निर्माता कंपनियों ने एक अति-सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हुए केंद्र, राज्य और जनता व निजी-अस्पतालों को अलग-अलग दामों पर वैक्सीन उपलब्ध कराने का विकल्प रखा है.
इस बात को मैंने अपनी भोंट बुद्धि से ऐसे समझा, कि दादाजी को यह दवा रू. 150 में मिलेगी! पिताजी जी को यह दवा रू. 400 मिलेगी! और बेटों/पोतों को यह दवा रू. 1200 रुपए में मिलेगी, जब की यह तीनो एक ही घर में…यानी एक ही देश में रहते हैl ये है. इसीको को कहते है “सत्ते पे सत्ता…”
अगर आप बुरा मानो तो एक बात कहूँ!!
भारत देश की भोली जनता ऑक्सीजन, दवा और अस्पताल में बेड मांगने के बजाय अगर अपने राज्यों में फिर से चुनाव करवाने की माँग कर देती तो ज्यादा अच्छा होता, क्योंकि जिन-जिन राज्यों में चुनाव हुए.. या हो रहे हैं, उन राज्यों में कोरोना लाख कोशिशों के बावजूद भी अपने आप को सेटल नहीं कर पाया है, ख़ासकर बंगाल में तो कोरोना को अपनी काबिलियत पर शक होने लगा है? “क्या में ही वो कोरोना हूँ जिसके चलते आधे से ज्यादा देश को lockdown कर दिया गया है”नाम छापने की शर्त पर स्यमं ‘कोरोंनो’ ने बताया की इस देश में मुझ ‘कोरोना’ साथ भी राजनीती हो रही है, राजनितिक पार्टियों ने नेताओं और आम जनता के लिए कोरोनो को लेकर अलग-अलग नियम बना रखें है…कहीं lockdown तो कहीं रेलियाँ?, कहीं अकेले आदमी का चालन तो कहीं शादियों में भीड़ की अनुमति? और तो और ‘दवा’ के साथ ‘दारु’ को भी अति-आवश्यक सेवाओं में शुमार??
जहाँ गरीब का चूल्हा तो बुझ रहा है पर राजनीतिक लपटें तेज होती जा रही हैं! जहाँ कोरोना को अवसर जान कर ऑक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी हो रही है, वहीँ अस्पतालों में बेड दिलवाने के लिए दलाल भी सक्रीय हो गए है!! जहाँ अमीर तो कैसे-जैसे जुगाड़-तुगाड़ लगा के अपने परिजनों का इलाज़ करवा रहा है! वहीँ लाचार गरीब सड़कों पर सत्ताधीशों की मांओं-बहनों को याद कर रहा है.
अंत में कोरोना ने अपनी वायरल भुजाओं से आंखों को पोंछते हुए बोला “मुझे नहीं रहना ऐसे देश में…भाई साहब मेरा तो हिसाब कर दो….!”
ऐसे विषयों पर वाकई व्यंग्य करने का दिल तो नहीं करता लेकिन सरकारों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए कलम का सहारा लेना पड़ता है.
जय हिन्द!ARTICLE WRITTEN BY
LAXMIKANT PAREEK
Critic,film maker& sr.journalist