हिन्दी सिनेमा खतरे में है, रीज़नल सिनेमा नहीं – तिग्मांशु धूलिया,,सिनेमा के ज़रिए करता हूं समाज को कुछ अच्छा देने की कोशिश – राकेश ओमप्रकाश मेहरा,,महिला निर्देशकों के प्रति भेदभाव रखती है फिल्म इंडस्ट्री – पाखी ए. टायरवाला,, वी शान्ताराम के फैंस के लिए दिखाई गई मशहूर फिल्मपड़ौसी

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21 जनवरी, शाम 5 बजे आइनॉक्स – जी.टी.सेन्ट्रल में होगी क्लोज़िंग अवॉर्ड सेरेमनी

जयपुर 20 जनवरी 2020।(निक कल्चर)जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल [जिफ] 2020 के तीसरे दिन कई अहम् मुद्दों पर संवाद हुआ, वहीं फिल्मों का लगातार प्रदर्शन हुआ। फिल्मप्रेमियों ने समारोह का बहुत आनन्द लिया।

दोपहर 12 से 1:30 बजे रीज़नल सिनेमा ऑफ इंडिया – टुडे एंड टुमॉरो, डाइवर्सिटी ऑफ इंडिया – रिफ्लेक्शन इन इंडियन सिनेमा सैशन हुआ। यहां गैंग्स ऑफ वासेपुर और पान सिंह तोमर के डायरेक्टर और राइटर तिग्मांशु धूलिया, बाला के लेखक निरेन भट्ट, लाल कप्तान के लेखक दीपक वेंकटेशन और इंद्रनील घोष ने हिस्सा लिया। वहीं, फिल्म मेकर गजेन्द्र क्षोत्रिय मॉडरेटर रहे।

हिन्दी सिनेमा खतरे में है, रीज़नल सिनेमा नहीं – तिग्मांशु धूलिया

सत्र में क्षेत्रीय सिनेमा, ख़ास कर राजस्थानी और हिन्दी सिनेमा में आने वाली चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई। सत्र में तिग्मांशु धूलिया ने साफ़गोई से कहा कि हिन्दी सिनेमा खतरे में है, क्षेत्रीय सिनेमा नहीं। चूंकि क्षेत्रीय सिनेमा जड़ों से जुड़ा हुआ है, वह कभी बाहर नहीं होगा। वहीं, चुटकी लेते हुए धूलिया ने यह भी कहा कि जिस तरह फिल्मों में गालियों की भरमार आ पड़ी है, उसकी ज़रुरत नहीं है। क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों का अपना रंग और लहजा होता है, और गालियों की जरूरत है ही नहीं।

तारक मेहता का उल्टा चश्मा जैसा शो लिख चुके नीरेन भट्ट ने कहा कि बॉलीवुड खिंचड़ी की तरह होता जा रहा है, जबकि रीज़नल कहानियां कम बन रही हैं। वहीं, सत्र में सभी वक्ताओं ने यह भी कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म और वेब सीरीज़ के दौर में नई कहानियों को ज्यादा स्पेस और आजादी मिलेगी। ऐसे प्लेटफॉर्म फिल्म निर्माताओं को बेहतर सिनेमा बनाने के लिए ज्यादा प्रेरित करेंगे।

सिनेमा के ज़रिए करता हूं समाज को कुछ अच्छा देने की कोशिश – राकेश ओमप्रकाश मेहरा

इसी कड़ी में आगे एक महत्वपूर्ण सत्र भी हुआ – सिनेमा ऑफ चेंज, जिसमें जाने – माने फिल्म निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने दर्शकों से संवाद किया। फिल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज ने मेहरा से फिल्मों से जुड़े कई सवाल किए।

दिल्ली 6, रंग दे बसंती और भाग मिल्खा भाग जैसी बड़ी फिल्में बना चुके राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने साफ कहा कि पाकिस्तान – हिन्दुस्तान और साम्प्रदायिक मसले बहुत हो चुके हैं, और अब हमें इससे आगे बढ़कर सोचना चाहिए। मेहरा ने कहा कि बचपन से विभाजन की दर्दनाक कहानियां सुनने के बाद उन पर इसका गहरा असर हुआ, और यह उनकी फिल्मों में भी कमोबेश दिखाई देता है। साथ ही मेहरा ने यह भी कहा कि बचपन में वी.शान्ताराम की फिल्म दो आंखें बारह हाथ देखने से वे अच्छा सिनेमा बनाने के लिए प्रभावित हुए। बातचीत में मेहरा ने अपनी आने वाली फिल्म उड़ान के बारे में भी बताया।

महिला निर्देशकों के प्रति भेदभाव रखती है फिल्म इंडस्ट्री – पाखी ए. टायरवाला

3 बजे वर्ड सिनेमा बाय विमन सैशन आयोजित हुआ, जिसमें गुड न्यूज फिल्म की राइटर ज्योति कपूर, डायरेक्टर, सिनेमेटोग्राफर और मुम्बई टॉकीज की फाउंडर सीमा देसाई, तेजपाल सिंह धामा, जानी – मानी राइटर और डायरेक्टर पाखी ए. टायरवाला और अर्मिनिया की फिल्म मेकर मैरिना लिबिक ने अपनी बात रखी, वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रेरणा साहनी ने मॉडरेटर की भूमिका निभाई।

सत्र की शुरुआत में ही पाखी ए. टायरवाला ने खुलकर कहा कि फिल्म इंडस्ट्री महिला निर्देशकों के प्रति भेदभाव भरा रवैया रखती है, और इस इंडस्ट्री में बने रहने के लिए उन्हें दोगुना काम करने की जरुरत है। महिला फिल्म मेकर्स को उनकी फिल्मों के लिए बहुत मुश्किल से ही फंडिंग मिल पाती है। वहीं उन्होने यह भी कहा कि यह महिलाओं और पुरुषों की लड़ाई जैसा नहीं है, बल्कि उन्हें मिलकर काम करने की ज़रुरत है। सीमा देसाई ने अपनी आगामी फिल्म पप्पू की पगडंडी के बारे में बात की, वहीं राइटर ज्योति कपूर ने बताया कि कैसे उन्हें फिल्म राइटिंग के लिए क्रेडिट नहीं मिला, और उन्हें इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा।

शाम 4 से 6 बजे सिनेमा और समाज: समकालीन सन्दर्भ संवाद रखा गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में हरीदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति ओम थानवी मौजूद रहे। संवाद की अध्यक्षता प्रो नरेश दाधीच ने की, वहीं बतौर वक्ता हरिराम मीणा, राजेन्द्र बोड़ा, ईश मधु तलवार, प्रबोध गोविल ने अपने विचार रखे। वहीं डॉ राकेश रायपुरिया और डॉ प्रणु शुक्ला ने मेहमानों का स्वागत किया। चर्चा में सिनेमा को समाज से जुड़ा एक पात्र बताया। सिनेमा एक ऐसी कला है, जिसमें सभी कलाओं का संगम है, और यह एक भावनात्मक कला है। उन्होंने बताया कि सिनेमा समाचार पत्रकारिता से ज्यादा प्रभावित है, और लोगो के लिए मनोरंजन का एक अच्छा साधन है। नरेश दाधीच ने सिनेमा से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को भी बताया। उन्होंने फाइट क्लब फिल्म का सटीक उदहारण देते हुए बताया कि अमेरिका में एक समय लोगों ने अपने दबाव को दूर करने के करने के लिए कई सारे फाइट क्लब खोले जिससे लोगो को काफी परेशानियां हुई जिसके बाद पुलिस के द्वारा इन क्लब को बंद करवाया गया। इसके अलावा हरिराम मीणा ने आदिवासी संस्कृति और समाज के बारे में बात की और बताया कि आने वाले समय में लोगो को आदिवासी संस्कृति को सहेज के रखना होगा। ओम थानवी ने बताया कि समाज है तो सिनेमा है और सिनेमा है तो समाज है।

वी शान्ताराम के फैंस के लिए दिखाई गई मशहूर फिल्मपड़ौसी

सोमवार को वी शान्ताराम के प्रशंसकों के लिए अपने ज़माने की मशहूर फिल्म रही पड़ौसी का प्रदर्शन किया गया। आज के दौर में जिस तरह साम्प्रदायिक भेदभाव और आपसी बैर का माहौल बन रहा है, पड़ौसी को देखना दर्शकों को कई सबक दे जाता है।

वी शांताराम की बहुचर्चित फिल्म पड़ौसी [1941] सामाजिक मुद्दों को छूती हुई फिल्म है। इस सोशल ड्रामा फिल्म को ख़ास और आज के वक्त में प्रासंगिक बनाता है इसका विषय, जो हिन्दू – मुस्लिम एकता की बात करता है। दर्शकों ने फिल्म का भरपूर आनंद उठाया।

हुआ कई फिल्मों का प्रदर्शन

फिल्म समारोह का चौथा दिन भी फिल्मों से सराबोर रहा। 20 जनवरी को मल्टीपल स्क्रीन्स में फिल्मों का लगातार प्रदर्शन जारी रहा। मेडिसिन लैम्प्स, दा जोकर, दा नॉट, दा सीक्रेट लाइफ ऑफ फ्रॉग्स, इनटॉलरेंट, चैम्पियन, बरिड सीड्स, हाउसफुल, प्रूफ, मैग्निफिशिएंट, हैप्पी बर्थ डे, हू इज़ माई नेबर, पिक पॉकेटर, मिलीभगत, वर्जिन स्लेव्स फॉर सेल, गॉन आर दा डेज़, दा आर्ट ऑफ डाइंग, मेड इन इंडिया, अपरूटिंग, पार्सल ग्रीड, स्मॉल फिश आदि फिल्में दिखाई गईं।

फिल्म ऑड कपल का प्रदर्शन ख़ास रहा, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अभिनय किया है।

ऑस्कर विजेता रही फिल्म डॉटर, डूबी को देखना फिल्म प्रेमियों के लिए विशेष अनुभव होगा।

राजस्थानी फिल्म स्मैश / चीड़ी बल्ला के प्रदर्शन का दर्शकों ने भरपूर आनन्द उठाया।

आज शाम 5 होगी क्लोज़िंग अवॉर्ड सेरेमनी

आज की शाम बहुत ख़ास होगी, चूंकि आज होगी जिफ 2020 की क्लोजिंग सेरेमनी। यहां दुनिया भर के हिस्सों से आई फिल्मों में से चयनित फिल्मों को अवॉर्ड्स दिए जाएंगे।

शाम पांच बजे आइनॉक्स [ऑडी 1] जी.टी.सेन्ट्रल में क्लोजिंग सेरेमनी आयोजित होगी।

मास्टरपीस फिल्म फॉस्ट – अ रिटर्न फ्रॉम द फ्यूचर और चीन की फिल्म सन राइज़ेस फ्रॉम दा ईस्ट पोल से गिरेगा जिफ 2020 का पर्दा

मारिया एलेक्सिया के निर्देशन में बनी 1 घण्टे 21 मिनट लम्बी फिल्म फॉस्ट – अ रिटर्न फ्रॉम द फ्यूचर सिनेमा की दुनिया में एक मास्टरपीस है। जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की क्लोज़िंग सेरेमनी में दिखाई जाने वाली इस फिल्म का विषय कवि गोथे की महान् रचना फॉस्ट पर आधारित है। ग्रीस में बनी यह फिल्म वर्तमान समाज की पड़ताल करती है, वह भी बहुत अनूठे तरीके से। निस्सन्देह निर्देशक मारिया ने विश्व सिनेमा को एक बेहतरीन फिल्म दी है। फिल्म में मुख्य पात्र एक रचनाकार है, जो ज़िंदगी के सच को एक इंसानी दानव से रिश्ते के ज़रिए समझता है। फिल्म का विषय बहुत प्रासंगिक है, जो सभी को जोड़ता है।

चीन की 92 मिनट लम्बी फीचर फिक्शन फिल्म सन राइज़ेस फ्रॉम दा ईस्ट पोल को फिनिक्स डॉन्ग ने निर्देशित किया है। फिल्म एक आम लड़की युएयान जू के बारे में है, जो शादी के ठीक एक दिन पहले गायब हो जाती है, जबकि उसका होने वाला पति जिउआन एक सेलिब्रिटी है। राज़ की बात यह है कि युएआन अचानक यूं कहां और क्यूं गायब हो गई?

बौद्ध धर्म का सार है मेरी कहानी – पताना थाइवैनिच

फिल्मों के महाकुंभ के इस माहौल में हमारी मुलाकात एक ऐसी ही शख्सियत से हुई, जो कि एक बहुत अच्छी स्क्रीन राइटर हैं।इनका नाम है पताना थाइवैनिच, जो थाईलैंड की निवासी और USA में स्क्रीनराईटर हैं। उन्होंने बताया कि वे बौद्ध धर्म से हैं, लेकिन USA में काम करते हुए वे अपने कर्तव्यों को भूल गई थी। अपने कर्तव्यों की तलाश में उन्होंने बौद्ध धर्म की काफी खोज की और इसके आधार पर ही उन्होंने एक स्क्रीन स्टोरी लिखी, जो पाश्चात्य संस्कृति को बौद्ध धर्म की और अग्रसर करती है। उन्हें उनके नैतिक मूल्यों की जानकारी देती है, और जीवन में अपने लक्ष्य को ढूंढ़ने में मदद करती है।

गुलाबी नगरी है बहुत पसंद – कोस्टाडिन बोनेव

जेएफएम में इन्हीं सेशंस के दौर में हमारी मुलाकात अपरूटिंग एक फीचर डॉक्यूमेंट्री फिल्म है, के निर्देशक कोस्टाडिन बोनेव से हुई। उन्होंने बताया कि यह फिल्म आर्मीनिया, टर्की और बुल्गारिया के इतिहास पर आधारित है। इस फिल्म में आर्मीनिया और बुल्गारिया के बीच हुए विभाजन के दौरान हुए नरसंहार को दर्शाया गया है। इतिहास प्रेमियों को यह फिल्म काफी पसंद आएगी। जिफ के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उन्हें यह काफी पसंद आया और उन्होंने पहले भी इसमें आने के लिए प्रयास किया था। उन्होंने बताया कि जिफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी कलाकारों के लिए अपनी कला दिखाने का एक मौका प्रदान करता है। उन्हें इतिहास काफी पसंद है, इसलिए उन्होंने इससे पहले भी कई फिल्में इतिहास और समकालीन मुद्दों को लेकर बनाई हैं। गुलाबी नगरी की तारीफ करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने जल महल के बारे में काफी सुना है और वे उसे देखने की इच्छा रखते हैं