गम्भीर कुपोषण बच्चों की जान ले सकता है :डॉ. संजय चौधरी, वरिष्ठ सलाहकार बाल रोग, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल

1067
सच के साथ सच की आवाज़

Newindia खबर, चिकित्सा विशेष,,

जयपुर 7 सितम्बर 2019।(निक चिकित्सा)गंभीर तीव्र कुपोषण (एसएएम) को लुभावने भाषण के दिखावटी आंकड़े की तरह पढ़ा जा सकता है, लेकिन यह जो वास्तविकता प्रस्तुत करता है वह आपके जीवन को पूरी तरह बदल सकता है। यदि कुपोषण का इलाज सही समय पर न किया जाए तो वह गंभीर और खतरनाक रूप भी ले सकता है| इससे प्रभावित बच्चे कमजोर और कंकाल की तरह दिखते हैं, उन्हें जीवित रहने के लिए तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। यदि पैरों, चेहरे और अंगों की सूजन जैसे लक्षण रहते है तो मरीज़ को पोषण संबंधी एडिमा भी हो सकता है| गंभीर तीव्र कुपोषण 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण हो सकता है। इसकी रोकथाम और उपचार बाल अस्तित्व और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। आर्थिक कारण, शिक्षा की कमी, अस्वच्छता और भोजन और आहार तक सीमित पहुंच से प्रभावित पोषण हमारे जैसे देशों में सतत विकास लाने के लिए बड़ी बाधाओं का सामना करता है।

सीरियस एक्यूट मेलन्यूअट्रशियंस चिंता का कारण क्यों,,,,

न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में, बल्कि शहरी मलिन बस्तियों में भी भारतीय बच्चों में कुपोषण एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता है। इनमें से लगभग दो तिहाई बच्चे एशिया में रहते हैं और दुनिया का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारत में रहता है। राजस्थान में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 20 प्रतिशत बच्चे या तो कम वजन के हैं या गंभीर रूप से कम वजन वाले हैं। पिछले 20 वर्षों में भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन 198 मिलियन टन से बढ़कर 269 मिलियन टन हो गया लेकिन जैसा कि यह पता चला है कि अनाज और अनाज के विकल्प पर खर्च की हिस्सेदारी 1972-73 और 2011-12 के बीच घटकर 57 हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में 25 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 36 प्रतिशत से 19 प्रतिशत तक पहुंच गयी है।
यह बताता है कि ग्रामीण और शहरी भारत में अनाज से ऊर्जा और प्रोटीन की मात्रा कम हो गई है, इसका मुख्य कारण दूध और डेयरी उत्पादों, तेल और वसा और अपेक्षाकृत हानिप्रद भोजन जैसे फास्ट फूड, बना हुआ खाना और अन्य खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत है। शहरी क्षेत्रों में हानिकार ऊर्जा और प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों की खपत बहुत अधिक है। ये सभी मिलकर भारत में कुपोषण की समस्या को बढ़ाते हैं हालांकि खाद्य उत्पादन में वृद्धि के बावजूद कुपोषण की दर बहुत अधिक है।
भारत और विश्व में कुपोषण एक बड़ी समस्या है। इसके शिकार बच्चे जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं। उनका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पाता। इस वजह से उनके अंदर बहुत सी बीमारियां हो जाती हैं। जिन लोगों के पास पैसा है वो इसे खाने के लिए सही खर्च नहीं करते हैं। उन्हें उन खाद्य पदार्थों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है जो खाद्य पदार्थों वे खा रहे हैं और न ही खाद्य लेबल पढ़ने जैसी चेतावनी के बारे में जानते हैं।
कुपोषण की रोकथाम और उपचार,,,,,,,,,,,,,,,,
तीव्र कुपोषण को समाप्त करना एक जटिल सामाजिक और राजनीतिक चुनौती है क्योंकि इसमें स्वास्थ्य सेवाओं और पौष्टिक खाद्य पदार्थों के लिए समान पहुंच में सुधार, स्तनपान और नवजात शिशु और युवा बच्चों को दूध पिलाने की आदत को बढ़ावा देना, पानी और स्वच्छता में सुधार करना और चक्रीय भोजन की कमी और आपात स्थिति की योजना बनाना शामिल है। अल्पावधि में, गंभीर तीव्र कुपोषण वाले बच्चों को जीवित रहने के लिए तत्काल जीवनरक्षक उपचार की आवश्यकता होती है।
रेडी-टू-यूज़ चिकित्सीय भोजन (RUTF) के साथ इस कार्य को आसान बनाया गया है। आरयूटीएफ 5 साल से कम उम्र के बच्चों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला उच्च ऊर्जा, सूक्ष्म पोषक तत्व से भरपूर गाढ़ा तरल पदार्थ है जो गंभीर कुपोषण से प्रभावित बच्चोंके लिये काफी फायदेमंद है। इस्तेेमाल करने से पहले इसे पकाने या तैयार करने की आवश्यकता नहीं है|
इन दिनों घर के बने भोजन की तुलना में फास्ट फूड का सेवन बढ़ गया है। ऐसे मामलों में मातृ और परिवार की शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने बच्चे को खिलाते समय उन्हें टीवी, मोबाइल फोन और लैपटॉप से दूर रखें क्योंकि यह भोजन के सेवन की अवधि को प्रभावित करता है।
इसके अलावा अपने बच्चे की राय पर विश्वास करें-यदि वह कहता है कि उनका पेट भरा हुआ है तो उन्हें अधिक खाने के लिए मजबूर न करें।`