सरकार के पास बेहतरीन संसाधन,निजी अस्पतालों के पास कुशल चिकित्सक,सरकार व निजी अस्पताल पार्टनरशिप में सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा सस्ती:डॉ भोजवानी

907

गाल ब्लेडर की पथरी को हलके में नहीं ले,,,,
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस समाप्त,,,,,
पूरी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी जाएगी,,

जयपुर 17 फरवरी।(निक चिकित्सा) गाल ब्लेडर
की पथरी को हलके में नहीं लेना चाहिए। इसका जल्द ही इलाज करा लेना चाहिए। ऐसा नहीं किया गया तो आगे गंभीर परेशानी आ सकती है।
आम तौर पर गाल ब्लेडर की पथरी होने के बाद लोगों को परेशानी नहीं होती। वे चलने देते हैं। आगे जाकर यह विकट समस्या खड़ी कर देता है। रोगी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

यह जानकारी लीवर, पेनक्रियाज और गाल ब्लेडर के सर्जन्स की कान्फ्रेंस में सामने आई।
कान्फ्रेंस के आर्गेनाइजिंग चेयरमैन डा. राजेश भोजवानी ने बताया कि उत्तर भारतीयों में पित्त की थैली में पथरी के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे है और लोग इसे हलके में ले लेते हैं जिससे आगे जाकर उनके लिए विकट समस्या खड़ी हो जाती है। कान्फ्रेंस का सबजेक्ट कंट्रोवर्सी इन एचबीपी (लीवर पेनक्रियाज व गाल ब्लेडर) सर्जरी रखा गया था जिसमें सर्जन्स की शंकाओं का समाधान किया गया।
कान्फ्रेंस में एक्सपर्ट ने यह भी बताया कि विदेशों की तरह अब हमारे यहां भी केडेवर ट्रांसप्लांट के मामले बढ़ रहे हैं। लोगों में आर्गन डोनेशन को लेकर अवेयरनेस आ रही है। पहले रिश्तेदारों के जरिए ही लीवर ट्रांसप्लांट किया जाता था।

पब्लिक-प्राइवेट पाटर्नरशिप से मिल सकता है ज्याद फायदा

कान्फ्रेंस में डा. आर जगन्नाथन ने बताया कि निजी अस्पताल और सरकारी मेडिकल कालेजों के अस्पताल मिल कर लोगों को ज्यादा फायदा दे सकते हैं। अभी लीवर ट्रांसप्लांट का खर्चा निजी अस्पतालों में 15 लाख रुपए तक आता है। सरकार के पास बेहतरीन संसाधन अस्पतालों में है लेकिन सुपर स्पेशयलिटी की कमी है। निजी अस्पतालों के पास बेहतरीन डाक्टर्स है। सरकार निजी अस्पतालों के साथ पाटर्नरशिप करके आम जनता को इसका फायदा दिला सकती है,साथ ही कारपोरेट-सोशल रेस्पांसबिलीटी के जरिए फंड भी एकत्रित किया जा सकता है। यह फंड गरीब व आर्थिक रुप से कमजोर मरीजों को दिया जा सकता है जिससे उन्हें भी इसका फायदा मिल सकता है।

कान्फ्रेंस में यह भी सामने आया कि गाल ब्लेडर कैंसर भी भारत में तेजी से बढ़ रहा है। सर्जरी व कीमोथेरेपी के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है। पेनक्रियाज टाइटस एक गंभीर बीमारी है इसका इलाज लंबा चलता है और रोगी को आईसीयू में रखना पड़ता है। इस बीमारी का इलाज उन्हीं अस्पतालों में होना चाहिए जहां सर्जरी, मेडिसन और रेडियोलाजी की सुविधा हो।
डा. भोजवानी ने बताया कि तीन दिन तक चली इस कान्फ्रेंस में 180 रिसर्च पेपर पढ़े गए और इतने ही एक्सपर्ट व्यूज आए। इसकी एक पूरी रिपोर्ट बना कर राज्य सरकार को दी जाएगी जिससे आम जनता को इसका लाभ मिल सके।